2 जीवन आधारित मोटिवेशनल कहानी | jivan par kahani

2 कहानियाँ जो आपको अपने लक्ष्य तक लेजाने को मजबूर कर देगी | जीवन आधारित मोटिवेशनल कहानी आपको एक सही रास्ता दिखाएगी और मंजिल तक पहुंचने में मद्दत करेगी। संघर्ष से सफलता की कहानी आपने बहुत पढी होंगी पर ये वाली kahani बहुत ही खास है। 

Jeevan par aadharit motivational kahani

आपको 2 कहानिया पढ़ने को मिल रही है जो आपकी life बदल सकती है इन्हे पूरा जरूर पढ़े और हमें बताये आपको ये कहानियां कैसी लगी है।

सफलता पाने का रहस्य – सुकरात :

एक समय किसी इंसान ने महान सुकरात ( Philosopher ) से पूछ लिया की आखिर ये सफलता का रहस्य क्या है ? what is the Secret of Success ?

तब सुकरात बे उस इंसान को बताया की कल शुबह तुम मुझे नदी के पास मिलो, तुम्हे वही पर तुम्हारे सवालो का जवाब मिल जायेगा।

अगले दिन जब वह इंसान सुकरात के कहने के मुताबिक नदी के पास पंहुचा तो वह पर पहले से ही सुकरात उसका इंतज़ार कर रहे थे। और सुकरात ने उस इंसान को नदी में उतरा और कहा तुम इस नदी की गहराई को मापो।

यह सुनते ही वह इंसान नदी में आगे की तरह जाने लगा थोड़ा आगे पहुंचने के बाद उस इंसान के नाख तक पानी आ चूका था उसी समय सुकरात ने उस इंसान का मुँह को पानी में डुबो दिया। और वह इंसान पानी से बहार आने के लिए झटपटाने लगा । अपने आप को बाहर निकलने की कोशिश करने लगा।

लेकिन सुकरात उस इंसान से थोड़ा ज्यादा बलवान ( Strong ) थे। सुकरात ने उस इंसान को कुछ देर तक पानी में डूबा कर ही रखा। और फिर सुकरात ने उस इंसान को छोड़ दिया।

फिर उस व्यक्ति ने जल्दी से अपने मुँह को पानी से बाहर निकाला और जोर-जोर से सांस लेने लग गया।

सुकरात ने उस इंसान से पूछा – जब तुम पानी के अंदर थे तब तुम क्या चाहते थे? इंसान ने कहा – में पानी से बाहर आकर सांस लेना चाहता था।

सुकरात ने कहा यही तुम्हारे उस सवाल का उत्तर है, जैसे तुम जल्दी से बाहर आकर सांस लेना चाहते थे। उसी तरह से अगर सफलता को चाहोगे तो तुम्हे सफलता जरूर मिलेगी।

लगातार अभ्यास का महत्त्व :

प्राचीन समय की बात है एक विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर पढ़ा करते थे, क्यों उस समय जिन बचो को पढ़ना होता था उन्हें शिक्षा लेने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था। बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल करते और साथ ही अध्ययन भी किया करते थे।

वरदराज नाम के लड़के को भी सभी बच्चों की तरह गुरुकुल मै भेज दिया गया। वहां वह आश्रम में अपने साथियों के साथ घुल-मिलने लगा।

लेकिन वरदराज बाकी बच्चो की तुलना में पढ़ने में बहुत ही कमजोर था। गुरुजी जो भी बताते थे उसको बहुत ही कम समझ में आती थी। इसी वजह से सभी बच्चो के बीच वह हसीं का कारण बनता है।

उसके सभी साथ के साथी उससे आगे निकल गए लेकिन वह आगे नहीं बढ़ सका। गुरुजी ने भी लास्ट में हार मानकर उसे बल दिया, “बेटा वरदराज! मैने हर तरीके से तुम्हे समझाने का प्रयास करके देख लिया है। अब तुम्हारे लिए यहि उचित होगा कि तुम यहां पर अपना समय बर्बाद मत करो। तुम अपने घर चले जाओ और अपने घरवालों के काम में उनकी मदद करो।”

वरदराज ने भी सोच लिया कि शायद ये शिक्षा मेरे ही किस्मत में नहीं हैं। और दुखी मन होकर गुरुकुल से घर के लिए निकल गया । दिन का समय था रास्ते में उसे प्यास लगने लगी। रस्ते पर जाते हुए देखा कि थोड़ी दूरी पर ही कुछ महिलाएं एक कुएं से पानी निकाल रही थी। वरदराज कुवे के पास गया।

वहां पे कुछ पत्थरों पर रसियो के निशान बने हुए थे, तो वरदराज ने महिलाओ से पूछ लिया, “यह पत्थरों पर निशान आपने कैसे बनाएं।”

तो एक महिला ने बोला, “बेटा यह निशान तो हमने नहीं बनाये है। यह निशान तो अपने आप पानी खींचते समय यह जो रस्सी है उससे पानी को बार-बार निकालने और वापस जाने से इस पत्थर पर ऐसे निशान बन गए हैं।”

यह सुनकर वरदराज सोच में पड़ गया। और उसने सोचा कि जब एक रस्सी के बार-बार आने और जाने से एक पत्थर पर निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास करने से में शिक्षा ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।

यह सोचने के बाद ही चहेरे पर हसी के साथ वह फिरसे वापस गुरुकुल में आया और काफी ज्यादा कड़ी मेहनत की। यह देख कर गुरुजी ने भी खुश होकर वरदराज का पूरा साथ दिया। कुछ सालों बाद यही मंदबुद्धि बच्चा वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का सबसे महान विद्वान बना। 

जिसने मध्‍यसिद्धान्‍तकौमुदी, लघुसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी की रचना की।

दोस्तों आपको यह जीवन आधारित मोटिवेशनल कहानी कैसी लगी है। हमें Comment करके आप जरूर बताये ऐसे ही और भी बहुत सी कहानियां है जो आपको यहाँ पढ़ने को मिल जाएँगी। तो मिलते है अब अगली कहानी में।

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